रामखिलावन दुबे का जन्म सन् 1921 में दुर्ग के देवादाग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम षोभाराम दुबे था। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी। दुर्ग जिले के पाटन क्षेत्र के माल गुजारों में राष्ट्रवादी भावना का प्रसार हो चुका था यही कारण है कि पाटन में महात्मा भगवानदीन आदि राष्ट्रीय नेताओं का भाषण हुआ करता था। अतः न केवल रामखिलावन दुबे बल्कि उनका सम्पूर्ण परिवार राष्ट्रवादी हो गया था। देवादाग्राम पाटन के पास मुख्य मार्ग में स्थित होने के कारण राष्ट्रीय घटनाओं के सम्पर्क में था। रामखिलावन दुबे ने अपने बड़े भाई रामानंद दुबे, द्वारिका प्रसाद दुबे आदि के साथ व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया था।
सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के कार्यक्रम उग्र एवं आक्रमक थे। वे गांव के अन्य साथी रामलाल, केषऊ और शिवसिंग आदि के साथ मिलकर शासकीय सम्पत्ति को क्षति पहुंचाते हुये पाटन के रावणभाठा में जुलूस के रूप में पहंुचे । यहां एक सभा का आयोजन किया गया था। इस घटना की खबर पाते ही दुर्ग जिला मुख्यालय से तीन लारियों में पुलिस के सिपाही आ गये और सभा की घेरा बंदी करने लगे। पुलिस के सिपाहियों ने उग्र भीड़ को देखकर उन्हें भयभीत करने के लिये हवाई फायर किया। इसके कारण भीड़ तितर बितर हो गयी। रामखिलावन दुबे अपने साथियों के साथ पास के खण्डहर में छिप गये।
आंदोलनकारियों के पकड़ में नहीं आने से बौखलाई पुलिस जनता के ऊपर जुल्म करने लगी, इसे देखकर दुबे जी अपने साथियों के साथ पुलिस के सामने पहंुच गये और स्वयं गिरफ्तार होकर निवेदन किया कि ग्रामवासियों को परेशान न किया जाये। दुबे जी और उनके साथियों के गिरफ्तार होने पर ग्राम के लोग गुस्से में आ गये और बड़ी संख्या में पहुंच कर पुलिस दल को घेर कर सत्याग्रह करते हुये बैठ गये तथा दुबे जी एवं अन्य आन्दोलन कारियों को मुक्त करने के लिये कहा। समझाने बुझाने पर भीड़ शांत हुई।
दुबे जी पर पाटन थाने को जलाने का आरोप लगाया गया था। इस अपराध में उन्हें पहले 15 सितम्बर से 27 अक्टूबर तक रायपुर केद्रीय जेल में डिटेन्सन में रखा गया फिर आरोप सिद्ध होने पर 6 माह की कारावास की सजा हुई। दुबे जी का सन् 1952 में देहावसान हुआ।
References:
- दुर्ग गजेटियर 1972 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी क्रं. 190
- मुकेष दुबे (पौत्र), साक्षात्कार 1 जून सन् 2022
- हरिभूमि, रायपुर, 15 अगस्त सन् 2003