बद्रीप्रसाद अग्रवाल का जन्म जून 1922 को रायपुर के निकट ग्राम रवेली में हुआ था। कम उम्र में ही वे रायपुर आ गये थे। यहां उन्होंने स्कूल में दाखिला लेकर पुनः प्राथमिक कक्षा की पढ़ाई की थी। इसी समय 1933 में उन्हें गांधीजी का भाषण सुनने का अवसर प्राप्त हुआ | यहीं से देशभक्ति की भावना जागृत हुई तथा आंदोलनकारियों के साथ जुलुस में भाग लेने लगे थे। 1940 से ही वे रायपुर के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महन्त लक्षमी नरायण दास के नेतृत्व में राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने लगे थे। किन्तु वृद्ध माता का सहारा होने के कारण महन्त जी ने आपको जेल जाने से मना कर दिया था। अतः उनकी गिरफ्तारी न हो इस बात का ध्यान रखा जाता था।
इसके पश्चात उन्होंने कुछ समय के लिये खम्हरिया आडिनेंन्स फेक्ट्री में कार्य कर आर्थिक दषा को सुधारने का प्रयास किया किंतु वह अधिक समय तक नहीं रह पाये तथा पुनः रायपुर आकर जैतूसाव मठ के महावीर व्यायामशाला जाने लगे। यह अखाड़ा महन्त लक्ष्मीनारायण दास जी के देख रेख में देष भक्तो का गढ़ था। बद्रीप्रसाद जी ने अपनी अद्भुत शारीरिक क्षमता के कारण दूर दूर तक बद्री पहलवान के नाम से ख्याति प्राप्त कर ली थी। लकड़ी पटा मल्खम एवं कुश्ती में विषेष योग्यता रखते थे। उन्होंने अपने इस हुनर का उपयोग राष्ट्र और मानव सेवा के लिये किया। वे कांगे्रस के नियमित सदस्य बनकर उसके सभी कार्यक्रमों में भाग लेते रहे।
भारत छोड़ो आन्दोलन की समाप्ति के पश्चात् भी पिकेटिंग स्वदेशी आदि आंदोलन का संचालन महन्त जी के द्वारा किया जा रहा था। इस समय साम्प्रदायिक दंगों की आषंका सदा बनी रहती थी। ऐसे अवसर पर श्री बद्री प्रसाद 1945 से 1948 के मध्य साम्प्रदायिक सद्भाव के लिये सतत् प्रयत्नशील रहे। उन्होंने अपनी ताकत एवं लकड़ी चलाने के हुनर का उपयोग रायपुर की जनता की रक्षा के लिए किया| कई बार अकेले ही खतरे में पड़कर भी लोगो की रक्षा की। इसलिये उनका नागरिक अभिनन्दन किया जाता था। लोगो के मध्य वे बद्री पहलवान के नाम से ख्याति प्राप्त थे। इनका देहवासन 90 वर्ष की आयु में 28 अगस्त,2012 को हुआ।
संदर्भः-
- छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी रायपुर के द्वारा प्रदत्त सम्मान पत्र।
- 1940 को महन्त लक्ष्मीनारायण दास एवं स्वयं सेवको के साथ की फोटो।
- शोधार्थी प्रमोद कुमार ठाकुर का ‘‘एकल अध्ययन’’।