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नागरदास बावरिया

Raipur, Chhattisgarh

August 08, 2022

नागरदास बावरिया का जन्म 18 अगस्त सन् 1923 को हुआ था। उनके पिता का नाम श्री नेमचन्द बावरिया था। नागरदास ने मिडिल स्कूल तक की पढ़ाई कर स्कूल त्याग दिया था और राष्ट्रीय आंदोलन की गतिविधियों से जुड़ गए थे। उन्हें अपने विचारों वाले युवाओं का समूह मिल गया था जिनमें जयनारायण पांडे, ईष्वरी चरण षुक्ला और नारायण दास राठौर आदि नवयुवक थे।

सन् 1933 में गांधी जी के रायपुर प्रवास के समय कम्पनी गार्डंन (वर्तमान में मोतीबाग) में खादी प्रर्दाषनी में उनके योगदान और उत्साह को देखते हुए स्वंय गांधी जी ने उन्हें सम्मानित किया था। महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के साथ रायपुर में उत्तेजना फैल गयी। स्कूल काॅलेजों में हड़ताल हो गयी। 9 अगस्त सन् 1942 की शाम को 4 बजे शहर के मध्य राष्ट्रीय विद्यालय से जुलूस प्रारम्भ हुआ। इसका नेतृत्व छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के छात्र रणवीर सिंह शास्त्री कर रहे थे। नारायणदास राठौर के साथ नरेन्द्र कुमार दुबे, नंद कुमार दानी आदि 63 आंदोलनकारियों के साथ नागरदास बावरिया भी गिरफ्तार कर लिये गये। इसके लिये उन्हें 15 दिन  की कारावास की सजा हुई।

जेल से मुक्त होने के पश्चात् पुनः वे क्रांतिकारी घटनाओं में सक्रिय हो गये और अपने साथी नारायणदास राठौर के साथ रायपुर केन्द्रीय जेल की दीवार उड़ाने की योजना बनाई तथा नवम्बर 1942 को राठौर जी के साथ जेल की दीवार में छेद बना कर डायनामाइट लगाया। यह घटना इतनी गुप्त रूप से की गई कि  पुलिस को इनकी जानकारी प्राप्त नहीं हुई थी, किन्तु डायनामाइट कांड का नेतृत्व करने वाले श्री ईश्वरी चरण शुक्ला अपै्रल सन् 1943 में गिरफ्तार कर लिये गये तथा कुछ समय के पश्चात् श्री जयनारायण पाण्डे डायनामाइट के बचे हुये सामाग्री के साथ गिरफ्तार हो गये। इसे देख कर नागरदास जी फरार हो गये उन पर 500 रूपये का इनाम रखा गया था  और उनकी फोटो प्रसारित हुई थी। अतंतः एक व्यक्ति की मुखबिरी के कारण वे सागर से गिरफ्तार कर लिये गये। उन्हें 9 अगस्तए 1942 से 1 नवम्बरए 1944 तक कारावास हुआ तथा 2 नवम्बरए 1944 को रिहा किया गया।

References:

  1. मध्यप्रदेष षासन द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रमाण पत्र 1972
  2. श्री नारायणदास राठौर के द्वारा प्रदत्त हस्तलिखित जानकारी।
  3. दैनिक देशबंधु रायपुर 12.10.1996।
  4. मध्यप्रदेष के स्वतंत्रता संग्राम सैनिक खण्ड-3, भाषा संचालनालय, संस्कृति  
    विभाग,  मध्यप्रदेष, भोपाल, 1984

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