Unsung Heroes | History Corner | Azadi Ka Amrit Mahotsav, Ministry of Culture, Government of India

Unsung Heroes Detail

Paying tribute to India’s freedom fighters

पंचम सिंह रावत

Pauri Garhwal, Uttarakhand

March 28, 2023 to March 28, 2024

देश की स्वाधीनता संग्राम में आजाद हिन्द फौज के भीतर गढ़वाली सैनिकों की विशेष भूमिका रही है। इस फौज में 3700 सैनिक और अधिकारियों ने सिंगापुर और पूर्वात्तर सीमाओं पर अपनी रण कुशलता से विश्व भर का ध्यान आकृष्ट किया किया था। पंचम सिंह रावत इन्हीं में एक सैनिक थे। इनका जन्म सन् 1907 में ग्राम चमनाऊ पट्टी किमगडीगाड, परगना चैंदकोट जिला पौड़ी गढवाल में ठाकुर जीत सिंह रावत के घर पर हुआ था। पांच भाइयों में से सबसे छोटे थे, इसलिए इनका नाम पंचम सिंह रखा गया। प्रारम्भिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद पंचम गढ़वाल राइफल्स में भर्ती होकर आजाद हिन्द फौज में भर्ती हो गए थे। इनकी योग्यता और शौर्य से प्रभावित होकर सुभाष चन्द्र बोस ने इन्हें सुप्रीम कमांड में लेफ्टिनेंट का पद देकर सम्मानित किया। कुछ अरसे बाद इन्हें सुभाष चन्द्र बोस की सुरक्षा में महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया। सुभाष चन्द्र बोस की कथित वायुयान दुर्घटना में भी वे उनके साथ अन्तिम समय तक थे। इसी कारण सुभाष की मृत्यु के बाद भी जांच ऐजेन्सियां इनसे पूछताछ करती रही। यही कारण था कि पंचम सिंह का स्पष्ट मानना था कि सुभाष दुर्घटनाग्रस्त विमान में सवार हुए ही नहीं थे। उन्होंने इसे हमेश सुभाष की कूटनीति का हिस्सा बताया। पंचम सिंह रावत की राष्ट के प्रति दीवानगी के कारण उनके परिवार हमेश आर्थिक संकटों से जूझता रहा। स्वयं पंचम सिंह ब्रिटिश पुलिस और फौज की नजरों से बचने के लिए भूमिगत हो गए थे। इस दौरान उन्होने रावलपिन्डी (अब पाकिस्तान) में गुप्रूप से रह कर स्वाधीनता संग्राम में भाग लेते रहे। पत्नी पावित्री देवी अपने बच्चों का किसी तरह भरण पोषण करती रही। इस तरह सन् 1946 में ब्रिटिश सेना ने इन्हें गिरफ्तार कर कैदियों के साथ इन पर मुकदमा चलाया गया। सन् 1947 में जब अन्य कैदियों के साथ इन्हें रिहा किया गया तो वापसी में गांव पहुंच कर इन्हें परिवार के लोग ही नही पहचान पाए। इसका कारण था कि इनके शरीर या युद्ध की चोट और गोलियों के अनेक निशान थे। किन्तु देश की आजादी के लिए इस योद्धा ने अपने परिवार तक की परवाह नही की। आजदी के बाद पं0 जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा गांधी के साथ रह कर इन्होेन आजाद हिन्द फौज सेनानियों की ढूंढ करवाने उनके आश्रितों को सहायता और पेंशन दिलाने में महत्वपूर्ण कार्य किया। इस तरह अपनी बहादुरी और सेवा के कारण इन्होंने चैंदकोट के जन शक्ति मोटर मार्ग का कार्य श्रमदान से कराने में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई। इसी के साथ चैबट्टाखाल में महाविद्यालय खुलवाने में भी आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। क्षेत्र की जनता मे अपनी लोकप्रियता के चलते हन्हें लोग प्यार से आजाद साहब कह कर पुकारते थे। उत्तराखण्ड सरकार ने इनके निधन के बाद गांव चमनाऊ के निकट बंगला घार में इनकी स्मृति में स्मारक का निमा्रण करवा का इन्हें श्रद्धांजली अर्पित की।

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