अजय सिंह चैहान के सुपुत्र झून सिंह का जन्म सन् 1912 में रवांई अंचल के ठकराल पट्टी के बजरी गांव में हुआ था और 20 मई, 1930 को राड़ीघाटी गोलीकाण्ड में शहीद हुए थे। इनके गांव के एक अन्य व्यक्ति श्री अजीत सिंह भी इस गोलीकाण्ड में शहीद हुए थे। 20 मई, 1930 को लाला रामप्रसाद की दुकान से डी0एफ0ओ0 पद्मदत्त तथा रवांई के एस0डी0एम0 सुरेन्द्रदत्त ने आन्दोलन के प्रमुख नेताओं दयाराम, हीरा सिंह, जमन सिंह को नाटकीय ढंग से गिरफ्तार किया था और उनको जेल सुपरवाईजर तथा पटवारी के पास टिहरी जेल के लिए रवाना कर दिया था। इस घटना की खबर आस-पास के गांवों में तेजी से फैली लोग आन्दोलनकारियों को डी0एफ0ओ0 तथा एस0डी0एम0 के चंगुल से छुडाने के लिए उनका पीछा कर डंडाल गांव पहुंचे जहां डी0एफ0ओ0 और एस0डी0एम0 को आन्दोलनकारियों ने पकड लिया था। आन्दोलनकारियों और इनके बीच झडप हुई और पद्मदत्त डी0एफ0ओ0 ने अपने बचाव के लिए आन्दोलनकारियों के उपर गोली चला दी जिसमें नगाण गांव के दो युवा आन्दोलनकारी, झून सिंह और अजीत सिंह शहीद हुए थे और इससे आगे जनान्दोलन ने और जोर पकड़ा था जिसके परिणास्वरूप 30 मई, 1930 को तिलाड़ी के मैदान में गोलीकाण्ड हुआ था जिसमे कई किसान नेता शहीद हुए थे और टिहरी रियासत द्वारा जन विरोधी वन अधिनियम भी आगे शक्ति से लागू नहीं हो सका था। रवांई जनान्दोलन के अमर शहीद झून सिंह को स्वतंत्रता सैनिक का दर्जा प्राप्त है। सन् 1970 में उ0प्र0 सरकार के सूचना एवं जन संपर्क विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक सं0-14 में शहीद के रूप में संक्षिप्त टिप्पणी है। छोटी उम्र में शहीद होने के कारण इनकी कोई सन्तान नहीं थी। इनके भाई के पुत्र तथा पौत्र इनके नाम से पहचान तथा आश्रित प्रमाण पत्र नहीं बना पाये थे किन्तु गांव की पूर्व प्रधान कु0 कल्पना चैहान ने इनके नाम पर “महात्मा गांधी रोजगार गारन्टी रोजगार योजना“ के अन्र्तगत शहीद द्वारा बनाया गया है। झून सिंह आज समस्त रवांई में उनके बलिदान के कारण अमर शहीद के रूप में जाने जाते हैं।