उत्तराखण्ड की सैन्य परम्परा में एक नाम सदैव गर्व से लिया जाता है वह है पान सिंह लटवाल अल्मोड़ा जनपद की खास पर्णा पट्टी के देवली गांव में पिता भवान सिंह के घर में 1902 में इनका जन्म हुआ। यही बालक आगे चलकर आजाद हिन्द फौज का सेनानी बना। परिवार की आर्थिक हालात अच्दे न होने के कारण पान सिंह को स्कूली शिक्षा भी नसीब नहीं हुई किन्तु बलिस्ट शरीर के कारण अल्मोडा के रामकृष्ण मिशन में उसे कार्य करने का अवसर मिला। यहीं से उसके मन में राष्ट्रभक्ति का बीज अंकुरित हुआ। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर 1930-1940 के दशक में जब महात्मा गांधी और सुभाष चन्द्र बोस की चर्चा देश भर में हो रही थी, तब उसने भी सुभाष की फौज में भर्ती होने का निश्चय किया। इस तरह जापान पहुंच कर वह सुभाष की फौज में भर्ती हो गए। देश के पूर्वाेत्तर हिस्सों के जंगलों में कष्टप्रद जीवन व्यतीत करते हुए उसने जान की बाजी लगा कर मित्र राष्ट की सेनाओं के छक्के छुड़ाए। इस अवधि में उसका घर से सम्पर्क पूरी तरह कटा रहा परिवार वाले भी समझ रहे थे कि वह अब जिन्दा नहीं होगा किन्तु जब उसका पत्र बडे भाई नाथुराम को पहुंचा तो घर वालों का खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वापस लौट कर जब उसने किस्से सुनाए तो क्षेत्र की जनता उसे घेर कर उसके युद्ध अनुभवों को सुनती थी। अक्सर पान सिंह गांव वालों को फौज के संकल्प गीत कदम कदम मिलाए जा, खुशी के गीत गाए जा, ये जिंदगी है कौम की तू कौम पर लुटाए जा। सुना कर येवाओं को देशभक्ति में झूमने के लिए मजबूर कर देते थे। सुभाष के अंगरक्षक दस्ते में भी पान सिंह को रहने का अवसर मिला था। पान सिंह की अपनी कोई सन्तान न थी, किन्तु उसकी पत्नी पानी देवी ने 95 वर्ष तक जीवित रह कर उसके साथ सतत् संघर्ष किया। दोनो लोग जनता के बीच उनकी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जन सेवक के रूप में चर्चित रहे। आजादी की रजत जयन्ती वर्ष पर देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने उन्हें ताम्रपत्र और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया था।