Azadi Geet of Uttarakhand
1.
परंपरिक तर्ज में उत्तराखंड के प्राकृतिक वैभव का गीत। यह गीत मेरे पहले कविता संग्रह (जो 4964 में प्रकाशित हुआ था, लीलाधर शर्मा के नाम से) में छपा था। उसमें भी मुझे राज्यगीत होने के गुण लगते हैं। क्योंकि जिलेवार किसी राज्य प्रशंसा करना संभव नहीं है। उसमें कुछ न कुछ चूक हो जायेगी। इसलिए पहाड़ी राज की जो प्रकृति चित्र और प्रकृति चरित्र सारे भूगोल पर लागू होता है, उस दृष्टि से 'शंखमुखी शिखरों पर' की इन पंक्तियों को भी देखा जा सकता है : - लीलाधर जगूडी।
दूर तक फैली हुई है
पर्वतों की श्रृंखलाएँ
फरफराती है उनीले
श्वेत मेघों की ध्वजाएँ |... दूर तक फैली हुई हैं पर्वतों की श्रृंखलाएँ
बज रहा है निर्झरों में समय
शंखों के स्वरों सा
लग रहा है गाँव मुझको
देवताओं के घरों सा
किन्नरों के साथ खेतों में
खड़ी हैं अप्सराएँ
दूर तक फैली हुई है। पर्वतों की श्रृंखलाएँ।
चीड़वन की सीटियों में
व्यथाएँ खोयी हुई हैं
ढलावों के वक्ष पर
पगडंडियाँ सोयी हुई हैं
वनस्पति के इशारों पर
नाचती है प्रेरणाएँ
दूर तक फैली हुई हैं, पर्वतों की श्रृंखलाएँ।
प्रार्थनाओं सी झुकी हैं
इन्द्र धनुषों की कतारें
धूप से पुरने लगी हैं
निम्न घाटी की दरारें
डोलती हैं धानगंधी | हवा की अनगिन भुजाएँ
दूर तक फैली हुई हैं, पर्वतों की श्रृंखलाएँ।
इस कविता में गायन के सारे गुण हैं। बशर्ते कि गायक का (या गायकों का) स्वर अच्छा हो। यह समूह गीत भी बन सकता है। इसकी धुन (लय) निर्धारित करने में भी सहयोग कर सकता हूँ।
-- लीलाधर जगूड़ी
2.
इस गीत का संगीत नये ढंग से रचना पड़ेगा - संगीतकार को।
उत्तर + अंखंड की संधि से 'उत्तराखण्ड' शब्द बना है, जिसका अर्थ
उखण्ड उत्तर होता है - लीलाधर जगूड़ी।
अखण्ड उत्तर की लय। रचता हिमालय
राष्ट्र शीश पर, श्वेत, पीत, हरिताभ वलय
भाग्य का सूर्य नीड। सौभाग्य का निलय
उत्तराखंड की समस्त दिशाएँ। हमसे अपना कंठ मिलाएँ
जय-जय-जय | जय-विजय करे |।
अखंड उत्तर की हम तस्वीर बनावें
दिल-दिमाग जिसका यश गावें
निर्भय प्रफुल्लित। विकसित, स्वस्थ, सुरक्षित
अखण्ड उत्तर के गीत गावें
सब कर्मठ दिशा-शिखर हो हरे-भरे
जय-जय-जय | जय-विजय करे।।
प्राणवायु के गीत। बलिदानों की गाथाएँ
देव भूमि उतरे भारत-भू-पर। निरुत्तरों का उत्तर बनकर
आकाश का छत्रदण्ड धरकर
सारे अद्वि, बद्रि बन जावें
हमारे वक्षस्थल, हिमाद्रवि से तन जावें
जय-जय उत्तराखंड हम गावें
हर दिशा-शिखर हो हर-भरे
जय-जय-जय | जय-विजय करे ।।
अहर्निश, चतुर्दिश, विकास प्रभा फैलाएँ
सर्वोननति के कदम, गर्वोन्नत हो जावें
स्वतंत्र यंत्र सब हों, आत्म नियंत्रित
हर ज्ञान, विज्ञान का काम करे
जय-जय-जय | जय-विजय करे ।।
साहस की सहायक हों, पर्वत उपत्यकाएँ
जो जलश्री, अन्नश्री, फलश्री फैलायें
औषधीय वनस्पतियाँ और वनश्री
सुमंगल प्राकतिक रास रचाएँ
प्रेम विजय की ध्वजा फहरावें
भारत जलधि पराक्रम से भरजावें
उत्तराखंड की एकलय हम साधें।